वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार सिंह
बिहार के बाँका जिले का मंदार पर्वत की चर्चा, भारतीय पौराणिक ग्रन्थों में भी वृहत्तर तरीके से की गई है। ऐतिहासिक पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार मंदार पर्वत अपने अंचल में 88 कुण्डों को समेटता था। इनमें से कई कुण्ड आज भी दर्शनीय हैं। इनमें सबसे बड़ा पर्वत के आधार पर अवस्थित पापहरणी कुण्ड है। मकर संक्राति एवं आषाढ़ शुक्ल की द्वितीया तिथि पर दूर-दूर से हजारों श्रद्धालु इस कुण्ड में स्नान करने आते हैं। इस कुण्ड को क्षीरसागर का प्रतीक मानते हुए इसके मध्य में शेषशायी विष्णु का लक्ष्मी नारायण मंदिर बनाया गया है, जो इस कुण्ड के आकर्षण और भव्यता को और बढ़ा देता है। पापहरणी के अलावा भाख कुण्ड भी एक महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल है। इसके बारे मे मान्यता है कि इसके मध्य में विष्णु का पाँचजन्य भाख रखा है। इसी भाख से शिव ने सागर मंथन के पश्चात निकले विष का पान किया था, जिसके प्रभाव से भांख नीलवर्ण हो गया है। इसके अलावा सीता कुण्ड भी श्रद्धा का एक केन्द्र है, जहाँ लोक प्रचलित मान्यता के अनुसार वनवास अवधि में सीता ने सूर्य की उपासना में छठ व्रत किया था। पर्वत के मध्य में एक गुफा में विष्णु के नरसिंह रूप की एक मूर्ति है, जिसके नाम पर यह गुफा “नरसिंह गुफा” के नाम से प्रचलित है। पर्वत के आधार स्थल पर सफा धर्म का सत्संग मंदिर है, जिसमें इस मत के प्रवर्तक स्वामी चन्दरदास के चरण चिह्न मौजूद हैं और इस मत के अनुयायियों के लिए यह मंदिर अधिवेशन केन्द्र के रूप में प्रयुक्त होता है। मंदार के पूरब की ओर तलहटी में प्राचीन लखदीपा मंदिर का जीर्णावषश अवस्थित है, जहाँ दीपावली की संध्या को एक लाख दीपों का विहंगम प्रज्जवलन किया जाता था। 1505 इस्वी में चैतन्य महाप्रमु का मंदार आगमन हुआ था और जिसके स्मृति स्वरूप उनके चरण चिह्न एक चबुतरे पर आज भी दर्शनीय है। इन स्थलों के अतिरिक्त भी पर्वत पर शिव, सिंहवाहिनी दुर्गा, महाकाली, नरसिंह आदि की सुन्दर मूर्तियाँ चारो तरफ अवस्थित हैं।
मंदार पर्वत का सांस्कृतिक पक्ष
पर्वत के परिसर में वर्ष में दो बार भव्य मेले का आयोजन होता है। मकर संक्रांति पर दूर-दूर सेश्रद्धालु पापहरणी सरोवर में स्नान करने आते हैं और इस अवसर पर एक पक्ष का मेला आयोजित होता है। पहले यह मेला बौंसी मेला के नाम से लोक प्रसिद्ध था और इसकी भव्यता की चर्चा काफी दूर-दूर तक जनप्रसिद्ध थी। वर्तमान में, इसे प्रशासन के सहयोग से सांस्थानिक रूप दिया गया और अब यह प्रत्येक वर्ष मंदार महोत्सव के नाम से आयोजित होता है। मकर संक्राति के बाद आषाढ़ मास को शुक्ल द्वितीया पर भी, यहाँ एक दिवसीय मेले का आयोजन होता है। इस अवसर पर मंदार से 5 कि.मी. पूर्व की ओर बासी नगर में अवस्थित मधुसूदन मंदिर से रथयात्रा निकलती है, जिसमें भगवान मधुसूदन की गजारूद्ध मूर्ति को पापहरणी सरोवर में स्नान कराने के लिए लाया जाता है। यह रथयात्रा जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा की तर्ज पर होती है और बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस अवसर पर एकत्रित होते हैं।
मंदार पर्वत
“वीरचान्दनयोर्मध्ये मंदारो नामः पर्वत”। विष्णु पुराण की इस पंक्ति में चीर और चान्दन नदी के मध्य जिस पर्वत की ओर इंगित किया गया है, वही आज दक्षिणी बिहार के गंगा के मैदान और संथाल परगना की उच्च भूमि की संधि पर 445 मीटर की ऊँचाई तक मस्तक उठाए खड़ा मंदार पर्वत है। भागलपुर से दक्षिण दिशा में झारखंड के दुमका की ओर जाने के रास्ते में बौंसी प्रखंड में प्रवेश करते ही काले ग्रेनाईट की एक ही शिला से निर्मित प्रकृति की यह अनुपम रचना, दृष्टिगत होती है और बरबस ही अपनी ओर ध्यान आकृष्ट कर लेती है। इसके साथ ही चरण से शिखर की तरफ जाते वलयकार चिह्न दूर से ही साफ-साफ नजर आते हैं। पौराणिक आस्थाओं की मानें तो, सागर मंथन में इसे मथनी की तरह प्रयोग करने के लिए इस पर, रज्जु के तौर पर लपेटे गए नागराज वासुकी की रगड़ से बने हुए हैं।
पौराणिकता में मंदार
प्राचीन धार्मिक साहित्यों में बाल्मिकी रामायण, मार्कण्डेय पुराण, मत्स्य पुराण, वामन पुराण, स्कण्य पुराण, वृहत पुराण, विष्णु पुराण, श्री भागवत पुराण, गरुड़ पुराण, मात्पथ ब्राहमण, कोई भी मंदार के उल्लेख से अछूता नहीं रहा है। प्रायः सभी आख्यानों में इसका संबंध, किसी महत्वपूर्ण घटना से जोड़ा गया है। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने जब असुर द्वय मधु-कैटभ कासंहार किया तो, मधु के सिर पर उन्होनें मंदार पर्वत और कैटभ के सिर पर ज्येष्ठगीर पर्वत (वर्तमान में मंदार से 25 कि.मी. उत्तर पश्चिम, रजौन में अवस्थित जैठोर) को स्थापित किया और यहीं से विष्णु का मधुसूदन रूप प्रचलित हुआ। यह मंदिर, मंदार पर्वत के चरण स्थली में अवस्थित है। मत्स्यपुराण और वामन पुराण की कथा के अनुसार मंदार पर्वत ही शिव की निवास स्थली थी। यहॉं से रावण द्वारा उन्हें उठा कर लंका ले जाने के क्रम में, रास्ते में वर्तमान देवघर भूमि पर रख देने के कारण शिव वैद्यनाथ के रूप में वहीं स्थापित हो गए और वैधनाथधाम तीर्थ की स्थापना हुई। वहीं, मार्कण्डेय पुराण का दावा है कि देवी दुर्गा ने महिषासुर का संहार, मंदार पर्वत देव से ही किया था। लोक प्रचलित मान्यता के अनुसार, वनवास की अवधि में सीता ने मंदार पर्वत के मध्य स्थित कुंड में छठ व्रत किया था। आज भी वह कुण्ड, सीता कुण्ड के नाम से अवस्थित है।
मंदार और जैन धर्म
हिन्दू धर्म के अलावा जैन परम्परा में भी मन्दार पर्वत की तीर्थस्थली के रूप में व्यापक महत्ता है। जैन धर्म के 12 वें तीर्थकर वसुपूज्य जो मूलतः चम्पापुरी के राजकुमार थे, ने इसी पर्वत को अपनी साधना भूमि के रूप में चुना था और अंततः यहीं निर्वाण को प्राप्त हुए थे। जैन मतावलंबियों के अनुसार वसुपूज्य के चरण चिन्ह अभी भी मंदार पर्वत के शिखर पर धिष्ठापित है। हालांकि वैष्णव मतावलंबियों में यह चिह्न, विष्णुपाद चिह्न के रूप में मान्य और पूज्य है।
सफा धर्म और मंदार
सफा धर्म बीसवीं सदी में एक स्थानीय सुधारक एवं धर्म प्रचारक श्री चन्दर दास जी द्वारा प्रवर्तित मता है। इस मत का प्राणतत्व है, बाह्य आचरण के साथ-साथ अपने अन्तर्मन की शुद्धता पर जोर। इस मत के सुधारवादी संदेश के कारण आस-पास के आदिवासी जनसमुदाय में इसे काफी लोकप्रियता प्राप्त हुई और बड़ी संख्या में संथाल और पहड़िया जैसे वनवासी समुदाय के लोग, इस मत के सत्संग में हिस्सा लेने लगे। इस धर्म के गतिविधियों का केन्द्र भी मंदार पर्वत अंचल ही रहा। इस प्रकार मंदार पर्वत तीन धर्मों की त्रिवेणी से सज्जित है। इसके चरणस्थली में सफा धर्म के केंद्र के रूप में सत्संग कुटिया अवस्थित है, तो मध्य भाग में नरसिंह गुफा के रूप में वैष्णव प्रभाव स्पष्ट होता है। वहीं, मंदार पर्वत का शिखर वसुपज्य के निर्वाण स्थल के रूप में एक जैन तीर्थ के रूप में स्थापित है। किन्तु, इन तीनो धर्मों को मंदार ने अपने अंचल में इस सौहार्द के साथ समेटा है कि एक ही चिन्ह को जैन मतावलंबी वसुपूज्य के चरण चिन्ह के रूप में, वैष्णव विष्णु पद मान कर के सदियों से पूजते आ रहे हैं। इसी पौराणिक मंदार पर्वत पर नवनिर्मित आकाशीय रज्जु पथ का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने, बीते मंगलवार को रिमोट का बटन दबा कर उद्घाटन किया था। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने शिलापट्ट का भी अनावरण किया। मुख्यमंत्री ने आकाशीय रज्जु पथ से मंदार पर्वत के शीर्ष पर पहुँच कर जैन मंदिर में भगवान महावीर की पूजा-अर्चना कर बिहार वासियों के सुख, शांति एवं समृद्धि की कामना की। जैन मंदिर के दर्शन के पश्चात् मुख्यमंत्री ने मंदार पर्वत के आसपास बसे इलाकों के संबंध में अधिकारियों से विस्तृत जानकारी ली। इसके पश्चात् मुख्यमंत्री ने मंदार पर्वत पर स्थित सीता कुंड का भी निरीक्षण किया। पत्रकारों से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह खुशी की बात है कि इस जगह पर रोपवे का निर्माण हुआ है। इसके उद्घाटन का आज मुझे अवसर मिला है। यह जगह ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का है। इसका काफी पौराणिक महत्व है।