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जातीय जनगणना को लेकर बिफरे लालू, बीजेपी पर किया जोरदार हमला


मुकेश कुमार सिंह
पटना (बिहार) : देश में जातिगत जनगणना को लेकर लंबे वक्त से ना केवल बहस छिड़ी है बल्कि अब इस पर विवाद भी गहराता जा रहा है। दीगर बात है कि जातीय जनगणना को लेकर केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि कोई जातिगत जनगणना नहीं होने जा रही है। जातीय जनगणना कराने से केंद्र के इनकार के बाद, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अपना धैर्य और आपा खो दिया है। लालू प्रसाद यादव ने ताबड़तोड़ दो ट्वीट किये हैं, जिससे साफ जाहिर हो रहा कि लालू प्रसाद यादव, हरहाल में जातिगत जनगणना के लिए बैचेन थे लेकिन केंद्र के फैसले के बाद उनके सब्र का बांध टूट गया है।जातीय जनगणना को लेकर बीते दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की थी। मुलाकात करने वालों में पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी थे। तेजस्वी यादव के पिता और बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव ने ट्विटर पर जम कर भड़ास निकाला है।

जातीय जनगणना कराने से केंद्र के इनकार के बाद, लालू ने ओबीसी तबके से आने वाले सांसद और मंत्रियों को खूब खड़ी-खोटी सुनाई है। लालू ने ट्वीट कर लिखा है कि ओबीसी वर्ग से चुने गए सांसदों और मंत्रियों पर धिक्कार है। इनका बहिष्कार होना चाहिए। लालू प्रसाद यादव ने ट्वीट में लिखा है कि “जनगणना में साँप-बिच्छू, तोता-मैना, हाथी-घोड़ा, कुत्ता-बिल्ली, सुअर-सियार सहित सभी पशु-पक्षी और पेड़-पौधे गिने जाएँगे लेकिन पिछड़े-अतिपिछड़े वर्गों के इंसानों की गिनती नहीं होगी। वाह! BJP और RSS को पिछड़ों से इतनी नफरत क्यों ? जातीय जनगणना से सभी वर्गों का भला होगा। इससे सबकी असलियत सामने आएगी। एक अन्य ट्वीट में लालू प्रसाद यादव ने लिखा है कि BJP-RSS पिछड़ा और अतिपिछड़ा वर्ग के साथ बहुत बड़ा छल कर रहा है। अगर केंद्र सरकार जनगणना फॉर्म में एक अतिरिक्त कॉलम जोड़ कर देश की कुल आबादी के 60 फीसदी से अधिक लोगों की जातीय गणना नहीं कर सकती तो, ऐसी सरकार और इन वर्गों के चुने गए सांसदों व मंत्रियों पर धिक्कार है। इनका बहिष्कार हो। गौरतलब है कि हाल में ही, बिहार के सीएम नीतीश कुमार की अगुवाई वाली प्रतिनिधिमंडल ने जाति गणना की मांग पीएम से की थी।

इसमें लालू प्रसाद यादव के बेटे और बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव भी शामिल थे। सभी ने जल्द से जल्द जातिगत जनगणना कराने की मांग की थी, जो लंबे वक्त से अटकी हुई है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा है कि पिछड़े वर्ग की जाति जनगणना एडमिनिस्ट्रेटिव तौर पर कठिन और बोझिल कार्य है। सोच -समझ कर, एक नीतिगत फैसले के तहत इस तरह की जानकारी को जनगणना के दायरे से अलग रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से इस मामले में हलफनामा दायर किया गया है। इसमें कहा गया है कि सामाजिक, आर्थिक और जातिगत जनगणना 2011 में की गई थी और उसमें कई गलती और त्रुटि थी। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि पिछले साल एक अधिसूचना जारी कर जनगणना 2011 के दौरान एकत्र जानकारी दी थी। इसमें एससी-एसटी की जानकारी है लेकिन जातियों की अन्य श्रेणी की चर्चा नहीं है। बड़ा सवाल यह है कि ओबीसी, पिछड़ी, अति पिछड़ी, दलित-महादलित के जातीय आधार पर जनगणना की वकालत की जा रही है लेकिन कहीं से यह आवाज नहीं उठ रही है कि सवर्णों की भी जातीय जनगणना होनी चाहिए। वैसे, भारत विषय का पहला देश है जहाँ, इकीसवीं सदी में जातिगत गणना की कवायद चल रही है। आजादी के इतने दशक बाद, आरक्षण को सही तबकों तक, कोई भी सरकार नहीं पहुँचा पाई लेकिन वोट की राजनीति में जातीय विष फैलाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही है। अगर सही मायने में, भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में लाने की पवित्र ईच्छा है तो, समाज को दो जाति, या वर्ग में बाँट कर आरक्षण का लाभ देना होगा। जाति और वर्ग, गरीब और अमीर के बनाने से ही, इस देश का भला होगा। अन्यथा, इस देश में कभी भी खूनी सामाजिक संघर्ष की पटकथा लिखी जा सकती है।

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