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पर्यावरण को समर्पित सुपौल काली मंदिर

नवरात्रि पर विशेष

सुमन कुमार सिंह

सुपौल ( बिहार) : हमारे देश में शायद ही ऐसा कोई मंदिर है, जिसके गर्भगृह में, ठीक प्रतिमा के समानान्तर कोई पौधा एक खास समय तक फलता-फूलता रहे एवं भक्तों के द्वारा पूजित भी होता रहे। लेकिन बिहार के सुपाैल में इस तरह का अद्भुत और एतिहासिक मंदिर है, जहाँ माँ काली विराजती हैं। इस मंदिर में माँ के साथ पेड़ की भी पूजा की जाती है। दीगर बात है कि मंदिर के गर्भगृह में उगे पेड़ पर्यावरण संरक्षण एवं जागरुकता का बहुत ही सशक्त माध्यम बना हुआ है। लगभग डेढ़ सौ वर्ष से भी अधिक इस पुराने मंदिर की परम्परा कुछ अलग तरह की है ।

नवरात्र में यहाँ कलश स्थापन की परम्परा नहीं है। यहाँ बिना कलश के जयन्ती उगाने का अनूठा विधान है। कलश स्थापन वर्ष में दो बार दीपावली एवं माघी पूर्णिमा में किया जाता है, जिस पर चढ़ाया गया नारियल पेड़ का रुप ले लेता है। इससे लोगों में सकारात्मक संदेश जाता है और पेड़-पौधों के प्रति अपनापन एवं संरक्षण के प्रति कर्तव्यवोध बढ़ता है। वैसे तो, इस मंदिर में सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन दुर्गापूजा, यानि नवरात्रि में माँ की पूजा-अर्चना के लिए नेपाल सहित विभिन्य इलाके से लोग आते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में आकर जो कोई मन्नत करता है, माँ उसे उसे पूरा करती है। इस दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता है।

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